*दीपावली एवं लक्ष्मी पूजा मुहूर्त:*
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अक्तूबर २०२४ विक्रमी संवत् २०८१ दिन गुरुवार तिथि अमावस्या ३१ अक्तूबर २०२४ को सायंकाल १५:५२ से ०१ नवम्बर सायंकाल १८:१६ तक है। अतः दीपावली का महापर्व ३१ अक्तूबर को ही आदर्श दिन है।

लक्ष्मी पूजा का निशिता मुहूर्त- ३१ अक्टूबर को रात ११ बजकर ३९ मिनट से देर रात १२:३१ बजे तक है।

प्रदोष काल- ३१ अक्टूबर को प्रदोष काल शाम ०५ बजकर ३६ मिनट लेकर ०८ बजकर ११ मिनट तक रहेगा।

वृषभ लग्न – शाम ०६ बजकर २५ मिनट से लेकर रात को ०८ बजकर २० मिनट तक रहेगा।

*लक्ष्मी पूजा का सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त:*
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प्रदोष काल, वृषभ लग्न और चौघड़िया के हिसाब से लक्ष्मी पूजन के लिए सबसे सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त ३१ अक्टूबर की शाम को ०६:२५ से लेकर ०७:१३ के बीच का समय का है। कुल मिलाकर ४८ मिनट का यह मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ रहेगा।

*अमावस्या, दीपावली (दीपोत्सव)*
*श्री महालक्ष्मी पूजन*

दीपो ज्योति परं ब्रह्म
दीपो ज्योतिर्जनार्दनः
दीपो हरतु मे पापं
दीपज्योति नमोऽस्तु ते.
शुभं करोति कल्याणं
आरोग्यं सुखसम्पदा.
द्वेषबुद्धि-विनाशाय
दीपज्योति नमोऽस्तुते.

दीपोत्सव के पावन पवित्र पर्व पर आप सभी को तत्पुरुष मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम का आशीर्वाद तथा आद्याशक्ति माँ जगदम्बा की असीम अनुकम्पा प्राप्त हो. आप सभी जीवन पर्यन्त स्वस्थ रहें. परमेश्वर से इसी प्रार्थना के साथ, आप सभी को सपरिवार दीपोत्सव की बहुत-बहुत बधाई हार्दिक शुभकामना।

*दीपावली पर लक्ष्मी पूजा का महत्व*
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हर वर्ष हम प्रभु श्रीराम के चौदह वर्ष का वनवास काटने व पापी रावण का अन्त करने के पश्चात् पुनः अयोध्या लौटने की खुशी में दिपावली का यह महापर्व बड़े ही धूम-धाम के साथ मनाते हैं। किन्तु दीपावली के दिन हम श्रीराम के बजाय माता लक्ष्मी की पूजा विशेष रूप से करते हैं।

इससे जुड़ी कई अलग-अलग मान्यताएं प्रचलन में हैं। कुछ
प्रचलित मान्यताएँ इस प्रकार हैं।

*माता लक्ष्मी का भगवान विष्णु से विवाह*
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यह कथा त्रेता युग से पहले की हैं जो समुंद्र मंथन के समय से जुड़ी हुई हैं। कहते हैं कि एक बार देवताओं के अहंकार से रुष्ट होकर माता लक्ष्मी पाताल लोक में चली गयी थी जो कि समुंद्र की गहराइयों में था। जब समुंद्र मंथन हुआ तो उसमे से माता लक्ष्मी भी प्रकट हुई थी। यह दिन कार्तिक मास की पूर्णिमा का दिन था जिसे हम शरद मास की पूर्णिमा के नाम से जानते हैं। यह दिन लक्ष्मी माता के प्राकट्य दिवस के रूप में मनाया जाता हैं।

मान्यता हैं कि कार्तिक मास की अमावस्या के दिन ही माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को अपने पति रूप में स्वीकार किया था जो कि दिवाली का ही दिन था। इसलिये इस दिन उनकी पूजा करने का महत्व हैं।

*माता लक्ष्मी का मृत्यु लोक पर आना*
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मान्यता हैं कि इस दिन माता लक्ष्मी अपने वैकुण्ठ धाम से मृत्यु लोक को आती हैं तथा अपने भक्तो के घरो में प्रवेश कर उन पर अपनी कृपा बरसाती हैं। दिवाली की रात को माता लक्ष्मी का मृत्यु लोक पर आगमन होता हैं। इस दिन माता लक्ष्मी मृत्यु लोक पर भ्रमण पर निकलती हैं तथा अपने मनचाहे घर में प्रवेश करती हैं। इसके पीछे एक बूढ़ी स्त्री की कथा भी जुड़ी हुई हैं।

इसलिये लोग दिवाली के दिन अपने घरो को रोशन रखते हैं व रातभर अपने घर के द्वार बंद नही करते क्योंकि उस दिन लक्ष्मी माता कभी भी घर में प्रवेश कर सकती हैं। यदि द्वार बंद हैं तो लक्ष्मी माता नही आती।

*माता लक्ष्मी के साथ माता सरस्वती व भगवान गणेश की पूजा भी अनिवार्य*
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इसके साथ ही हम देखते हैं कि दिवाली के दिन माँ लक्ष्मी के साथ माता सरस्वती व भगवान गणेश की पूजा भी अनिवार्य से रूप से की जाती हैं। मान्यता हैं कि जिस घर में माता लक्ष्मी के साथ माँ सरस्वती व भगवान गणेश की पूजा ना की जाए तो उस घर में माता लक्ष्मी का प्रवेश नही होता।

इस बात का आशय यह हुआ कि धन वही रहता हैं जहाँ विद्या व बुद्धि का समावेश होता हैं। बिना विद्या व बुद्धि के धन का कोई महत्व नही हैं। इसका पता हमे लकड़हारे की कथा से चलता हैं।

*दिवाली के दिन लक्ष्मी पूजा*
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दिवाली की संध्या को लोग अपने घरो व दुकानों पर शुभ मुहूर्त पर माँ लक्ष्मी की पूरे विधि-विधान के साथ पूजा करते हैं। उनकी पूजा करने के पश्चात ही बाकि अन्य काम किए जाते हैं। लोगो के लिए यह दिन नए वर्ष का प्रथम दिन भी होता हैं तथा व्यापारी इस दिन अपने बही-खातो इत्यादि की पूजा कर उन पर साथिया बनाते हैं व तिलक लगाते हैं तथा उसे लक्ष्मी माता के चरणों में रखते हैं ताकि वर्षभर उनके घर व व्यापर में माता लक्ष्मी की कृपा बनी रहे।

भारत के उड़ीसा, पश्चिम बंगाल और असम जैसे राज्यों में इस दिन माँ काली की पूजा होती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन माँ काली लगभग ६० हजार योगिनियों के साथ प्रकट हुई थी। इसलिए भारत के कुछ राज्यों में माँ काली की अर्धरात्रि में पूजा की जाती है।

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